तेरे रुजू कपोल का स्पर्श,
लालिमा लाया हे,
चहरे की सुर्खियों को ल हटा के,
उजागर पाया हे,
खुशबू बन के महेकी हे ये तेरी ,
सुबह की अंगडाई ,
तेरे साथ मेने भी अब तो,
मुहोब्बत का रंग चढाया हे…….
विस्मित लोचन की दिप्तता ने,
ये उजाला फैलाया हे,
समेट जब गेसुओं को आप ने,
सवेरा तब संभiल पाया हे ,
नाजुक सी छुअन थी तेरे पेरों की ,
रज भी जिस से मुस्कुराई ,
संदल बाँहों का स्पर्श ही तो हे ,
मेने होश गवाया हे …….
कहे तो कहे कोई , मुझे दीवाना ,
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